लेखनी कहानी -13-Oct-2022
" रहूँ सुहागन सजन तुम्हारी "
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लिपटी यूँ ही रहूँ प्यार से,
प्रियवर तेरे सीने में।
नहीं बता सकती तेरे संग,
मज़ा है कितना जीने में।
रहूँ सुहागन सजन तुम्हारी ,
मुझसे दूर नहीं जाना।
तेरे बिन ये दिल न लागे,
ओ मेरे जाने जाना।।
बिन तेरे श्रृंगार अधूरा,
मेंहदी भी फीकी लागे।
अधरों की लाली, बाली,
न बिंदिया नीकी लागे।
आलिंगन में तेरी धड़कन,
मेरा दिल आभास करे।
मेरा दिल भी तेरे दिल से,
मूक प्रीत संभाष करे।
प्रिये तुम्ही संसार हो मेरा,
तेरे सीने में है जन्नत।
माँग कभी न सूनी होवे,
माँग रही रब से मन्नत।
करवाचौथ की आई बेला,
'अमर' सदा हो प्रेम हमारा।
सीने से लग गई सजन के,
मानो जीत लिया जग सारा।
मौलिक/
अमर सिंह राय
आलेखक
आकाशवाणी छतरपुर, म.प्र.
Suryansh
20-Oct-2022 06:39 AM
बहुत ही उम्दा और सशक्त रचना
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Raziya bano
14-Oct-2022 03:57 PM
Bahut khub
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Neeraj Agarwal
14-Oct-2022 03:20 PM
बहुत बढ़िया अंदाज़ है
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